बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि कर्मचारी की नियुक्ति के बाद भर्ती नियमों को पिछली तिथि से बदलकर उनकी सेवा समाप्त नहीं की जा सकती। जस्टिस रजनी दुबे की सिंगल बेंच ने याचिकाकर्ता की सेवा समाप्ति को रद्द कर दिया और प्रारंभिक नियुक्ति के समय के भर्ती नियमों के अनुसार उनकी योग्यता का पुनर्मूल्यांकन करने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ता स्मृति सत्यवती दुर्गम को 1 अप्रैल 2007 को महिला और बाल विकास विभाग के तहत बस्तर के एर्राबोर यमपुर में एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में नियुक्त किया था। उनकी नियुक्ति 2 अप्रैल 2008 को जारी भर्ती दिशा-निर्देशों से पहले हुई थी। इसमें आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए यह अनिवार्य किया गया था कि वे उसी गांव के निवासी हों जहां केंद्र स्थित है। 2014-15 में, याचिकाकर्ता ने मुरडांडा गांव में एक
समान पद के लिए आवेदन किया। उसने छह साल का अनुभव और नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी) भी प्रस्तुत की। हालांकि, मेरिट लिस्ट में दूसरा स्थान प्राप्त करने के बावजूद उनकी उम्मीदवारी निरस्त कर दी गई। अधिकारियों ने आरोप लगाया कि 2007 में उनकी प्रारंभिक नियुक्ति 2008 के निवास स्थान संबंधी नियमों का उल्लंघन करती है और जुलाई 2015 में उनकी सेवा समाप्त कर दी गई। याचिकाकर्ता ने इस सेवा समाप्ति को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि 2008 के भर्ती नियमों को पिछली तिथि से लागू कर 2007 में हुई उनकी नियुक्ति को अमान्य नहीं ठहराया जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि 2008 में जारी भर्ती नियमों को 2007 की नियुक्ति को अमान्य करने के लिए लागू करना कानूनी रूप से सही नहीं है। सिंगल बेंच ने कहा- यह स्पष्ट है कि उत्तरदायी अधिकारियों ने इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति 2007 में हुई थी, जबकि दिशा-निर्देश 2 अप्रैल 2008 को जारी किए गए थे। अदालत ने निष्पक्ष प्रक्रिया की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि याचिकाकर्ता को अपनी बात रखने का उचित अवसर नहीं दिया गया। उन्होंने कहा कि यदि उनकी नियुक्ति नियमों और दिशा-निर्देशों के अनुसार कानूनी और वैध पाई जाती है, तो उत्तरदायी अधिकारी याचिकाकर्ता को 2007 के पहले नियुक्ति आदेश के अनुसार सेवा में बहाल करें।