बिलासपुर। वैद्यशाला आयुर्वेद चिकित्सा एवं पंचकर्म संस्थान में हर तरह के रोगों की रोकथाम और इलाज के लिए परामर्श और उपचार दिया जा रहा है। अस्पताल के संचालक डॉ मनोज चौकसे के अनुसार कुष्ठ (त्वचा) रोग में पथ्य के तौर पर 15-15 दिनों पर वमन कराना चाहिए ।
प्रत्येक मास में (1-1महिने पर) विरेचन कराना, 3-3 महिने पर नस्य कर्म, 6-6महिने पर रक्तमोक्षण कराना चाहिए। घृतपान तथा घृतप करना, पुराना जौ, गेहूं तथा शालिचांल, मूंग, अरहर (रहड़), मसूर, मधु, जंगली पशु-पक्षियों के मांस, आषाढ़ मास में उत्पन्न होने वाले फल, ककड़ी, खीरा, अमरूद आदि, वेतस के कोमल पत्ते, परवल, बृहतीफल, काकमाची, निम्बपत्र, लशुन, हुरहुर- शाक, पुनर्नवाशाक, मेढ़ासिंगी, चकवड़पत्रशाक, शुद्ध भल्लातक, पका ताड़फल, खदिरकाष्ठचूर्णक्वाथ, चित्रकमूल, त्रिफला, जायफल, नागकेशर, केशर, पुराना घी, कड़वीतोरई, कण्टकीकरंजबीज, तिलतैल, सरसोंतैल, निम्बतैल, इड़गुदी तैल, सभी लघु अन्न, सरलतैल, देवदारूतैल, शीशम तैल एवं अगुरूतैल, गोमूत्र, गदहे का मूत्र, ऊंट का मूत्र एवं भैंस का मूत्र, कस्तूरी, गन्धसार, तिक्तद्रव्य और क्षारकर्म दोषानुसार उपर्युक्त सभी द्रव्य कुष्ठरोग में पथ्य कहे गये हैं ।
कुष्ठ (त्वचा) रोग में अपथ्य (क्या न करें)
पाप कर्मों में लिप्त रहना, कृतघ्नभाव ( उपकारों को नहीं मानना), गुरू की निन्दा करना, गुरू को कष्ट देना, विरुद्धपान, विरूद्धभोजन, दिन में सोना, प्रचण्ड सूर्यताप में चलना, विषम (मिथ्या) आहार, स्वेदनकर्म, मैथुनकर्म, वेगों को रोकना,, ईख से बने पदार्थों का सेवन, व्यायाम, अम्लपदार्थ, तिल, उड़द, द्रव अन्न (पतली खिचड़ी आदि), भारी अन्न, विदाहि एवं विष्टम्भि पदार्थ, मूली, सह्याद्रि और विन्ध्याचल से निकली नदियों का जल, आनूप ( जलीय) पशु-पक्षियों के मांस, दही, दूध, गुड़ादि पदार्थों को कुष्ठ रोगियों को सेवन नहीं करना चाहिए। अधिक जानकारी के लिए अरपा पुल के पास, मेन रोड, नेहरू चौक, बिलासपुर (छ. ग.) Mob: 98271-71060, 81098-63568 Ph: 07752-412224 पर संपर्क किया जा सकता है।