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सरकारी विभागों में बिना परमिशन चल रहे निजी वाहन, राजस्व का हो रहा नुक्सान

 




जांजगीर चांपा । शासन द्वारा लागू गाइड लाइन के पालन की जिम्मेदारी जिन्हे दी गई है, अब वे ही नियमों की धज्जिया उड़ाते हुए चहेतो को लाभ और शासन के खजाने को खाली कर रहे। मुख्यालय में कलेक्टर से लेकर अधिकांश विभाग के आला अधिकारी बिना वित्त विभाग के अनुमति बेसकीमती निजी वाहनों का उपयोग कर रहे। जिले में बिना टेक्सी परमिट वाली वाहनों का विभाग में इस्तमाल आरटीओ विभाग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। शासन से सभी विभागों में टैक्सी वाहन लगाने के लिए सख्त निर्देश दिए हैं। सरकारी विभागों में टैक्सी पास गाड़ियों की जगह पर विभागीय अधिकारी-कर्मचारी अपनी गाड़ी और चहेतो के निजी वाहन अटैच किए हुए हैं। दरअसल शासन के नियम से विभाग में लगने वाले चार पहिया वाहन टैक्सी में पास होना अनिवार्य है। इस नियम की जानकारी सभी जिला अधिकारियों को है। इसके बावजूद शासन के निर्देशों को ताक पर रखकर अधिकारियों ने निजी वाहन कार्यालय के उपयोग के लिए लगा रखे हैं। जिसकी वजह से परिवहन विभाग को हर साल लाखों रुपए राजस्व की हानि हो रही है। जबकि टैक्सी में पास कराने के लिए लोगों को अधिक टैक्स जमा करना होता है। वहीं रजिस्ट्रेशन एवं फिटनेस की अलग से फीस जमा करनी होती है। निजी में पास कराने पर कम टैक्स लगता है और आजीवन के लिए कोई झंझट नहीं रहता है।

वही दुर्घटना होने की स्थिति में अधिकारी एवं वाहन मालिक ले देकर मामला को खत्म कर देते हैं। अधिकारियों और वाहन मालिकों की साठगांठ के चलते निजी वाहनों को विभागों के कार्य के लिए लगाया गया है। निजी वाहन जिला पंचायत, पुलिस विभाग, जनपद पंचायत, नगर पालिका, राजस्व विभाग, कृषि विभाग सहित अन्य विभाग में लगे हुए हैं। खासबात यह कि कार्यालय में लगे वाहनों से कई बार एक्सीडेंट भी हो चुके हैं। अधिकारियों द्वारा मामला को पैसा देकर रफा दफा कर लिया जाता है। यदि टैक्सी वाहन किसी कार्यालय में लगी है, और उसे अन्य प्रदेश में जाना है तो उसे उस प्रदेश का टैक्स वाहन मालिक का भुगतान करना होता है। जिला प्रशासन ने निजी गाड़ियों लगा रखी हैं। इसलिए उन्हें अन्य प्रदेश में जाने पर टैक्स भी नहीं कटाना पड़ता है।


1 से डेढ़ हजार रुपए तक जमा करना पड़ता है शुल्क

यदि चार पहिया वाहन को टैक्सी में पास कराते हैं तो करीब गाड़ी की कीमत से करीब 8 से 9 प्रतिशत टैक्स जमा करना होता है। साथ ही रजिस्ट्रेशन फीस लगभग 3 से 4 हजार रुपए, उसके बाद हर साल गाड़ी की फिटनेस करानी होती है। जिसमें करीब एक से डेढ़ हजार तक शुल्क जमा करना होता है, मगर जिले के अधिकाश शासकीय कार्यालयों में लगे निजी वाहन मालिक न तो टैक्स जमा करते और न भी उन्हें फिटनेस कराने की जरूरत पड़ती है।


चहेतो को हर माह शासन के खाते से 25 से 30 हजार रूपये हो रहा भुगतान

जिले के अधिकाश शासकीय कार्यालयों में जिला अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने अपने भाई या रिश्तेदार के नाम से गाडिय़ां खरीद ली हैं, और अपने कार्यालय में ही गाड़ियों को लगा जमकर लाभ ले हैं। शासन वाहन लगाने पर 25 से 30 हजार रुपए प्रतिमाह भुगतान किया जाता है। गाड़ी भी अधिकारी सामने रहती है और देखरेख होती रहती है।


निजी वाहन से शासन को नहीं मिल पाता है राजस्व

शासन ने निजी वाहनों पर टैक्स बहुत लिया जाता है, क्योंकि वह निजी उपयोग के लिए होती है। टैक्स परमिट वाली गाड़ियों में भी नंबर प्लेट पीले रंग का लगाया जाता है। विभाग में लगाने के लिए टैक्सी वाहन होना अनिवार्य है। इसके लिए शासन ने सभी जिला अधिकारियों को निर्देश भी दिए हैं। जिससे राजस्व भी आता है। टैक्सी वाहन पर टैक्स भी अधिक रहता है, और उसकी हर साल फिटनेस करानी होती है। यदि शासकीय राशि से किसी निजी वाहन मालिकों को प्रति माह भुगतान किया जा रहा है तो यह गलत है।

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