बिलासपुर 6 जुलाई। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने राइट टू एजुकेशन (आरटीई) अधिनियम के तहत गरीब बच्चों को प्रवेश नहीं देने और बिना मान्यता के स्कूलों के संचालन को लेकर कड़ा रुख अपनाया है।
बिलासपुर 6 जुलाई। कोर्ट ने शिक्षा विभाग से इस गंभीर लापरवाही पर जवाब मांगा है और पूछा है कि आखिर क्यों ऐसे स्कूल संचालकों पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की डिवीजन बेंच ने राज्य सरकार और शिक्षा सचिव को निर्देशित किया कि वे 13 अगस्त तक शपथपत्र के माध्यम से स्पष्ट करें कि इस पूरे मामले में अब तक क्या कदम उठाए गए हैं। कोर्ट ने यह भी कहा है कि शिक्षा के अधिकार के तहत 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देना हर राज्य की संवैधानिक जिम्मेदारी है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि प्राइवेट स्कूल के मालिक बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं और खुद मर्सिडीज गाड़ियों में घूम रहे हैं। हाल यह है कि पान दुकान वाले भी बिना मान्यता के नर्सरी स्कूल चला रहे हैें।
दरअसल, प्रदेश के कई निजी स्कूल बिना किसी मान्यता के नर्सरी से लेकर कक्षा 8 वीं तक की पढ़ाई करा रहे हैं। इस मामले को लेकर विकास तिवारी ने जनहित याचिका दायर की है। यह याचिका उन स्कूलों के खिलाफ दायर की गई थी, जिन्होंने आरटीई कानून के तहत गरीब तबके के बच्चों को प्रवेश नहीं दिया, जबकि वे इसके लिए बाध्य थे। आरोप यह है कि ये स्कूल बिना मान्यता के चल रहे हैं और सरकारी सब्सिडी और नियमों की अनदेखी करते हुए मनमानी फीस वसूल कर रहे हैं। याचिका पर चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच ने पूर्व में स्कूल शिक्षा सचिव को हलफनामा के साथ बताने को कहा है कि, जब 2013 के सर्कुलर के अनुसार नर्सरी कक्षाएं भी मान्यता के दायरे में आती हैं, तो फिर बिना मान्यता स्कूल कैसे चलाए जा रहे हैं। हाईकोर्ट ने यह भी पूछा कि जब पहले ही कहा गया था कि जब तक इन स्कूलों को मान्यता नहीं मिल जाती, तब तक वे किसी नए छात्र को प्रवेश नहीं दे सकेंगे तो फिर एडमिशन कैसे हुए।
हाईकोर्ट ने तल्ख लहजे में टिप्पणी करते हुए कहा, कि “गली-गली में मर्सडीज में घूमने वाले लोग स्कूल खोल रहे हैं, जिनके पास न तो मान्यता है और न ही बुनियादी सुविधाएं। यह शिक्षा के अधिकार कानून की सीधी अवहेलना है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में बच्चों को 5-5 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ है।
हाईकोर्ट ने सरकार और शिक्षा सचिव को फटकार लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार 13 अगस्त तक शपथपत्र के साथ स्थिति स्पष्ट करे। इसमें उन स्कूलों की सूची प्रस्तुत की जाए जो बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं। इसके साथ ही यह भी बताया जाए कि अब तक इन स्कूलों के खिलाफ कौन-कौन से कदम उठाए गए हैं और भविष्य में ऐसी गड़बड़ियों को रोकने के लिए सरकार की नीति और कार्ययोजना क्या होगी।