वीआईपी कल्चर को देश की सामाजिक व्यवस्था पर एक अभिशाप कहा जाए तो गलत नहीं होगा. किसी भी स्थल पर आम व्यक्ति को अनेक कठिनाइयों को सामना करना पड़ता है. अगर मंदिर है तो दर्शन करने के लिए लाइन लगानी पड़ती है, बैंकों में भी पैसे निकलने के लिए लाइन में खड़ा होना पड़ता है. इस बीच कोई ऐसा व्यक्ति आ जाए जिसे बाकी सब के मुक़ाबले प्राथिमिकता जाए, वो भी इसलिए क्यूंकि उसने थाकथिक एलिट वर्ग में अपनी जगह बना ली है, ये कहां तक तार्किक है, ये विचार करने वाली बात है. प्रधानमंत्री बनते ही नरेंद्र मोदी ने इसको त्यागने की बात कही थी. लेकिन इसका कितना असर हुआ इसपर भी बहस होना चाहिए . खुद बीजेपी के कितने सांसद और विधायक प्रधानमंत्री की बात मान रहे है, इसपर भी विवेचना होनी चाहिए. एक उदाहरण ये है कि रूट में बदलाव के कारण लोग रास्ता भटक जाते है. पुलिस उसने आतंकवादियों के तरह व्यवहार करने लगती है. माना सुरक्षा मिलनी चाहिए, लेकिन ऐसी व्यवस्था भी बनानी चाहिए जिससे आम जनता हो परेशानियां न हो.
वीआईपी कल्चर का रूप छोटा होना चाहिए सरकार के आवभगत खर्च पर होना चाहिए नियंत्रण, अनावश्यक खर्च नेताओं मंत्रियों विधायकों सांसदों, अधिकारीयों को स्वयं ईस प्रकार के वीआईपी कल्चर छोड़ साधारण परिवेश अपनाएं की पंरपरा चालू करनी चाहिए।
पुर्व की सरकार की तरह वाहनों, गेस्ट हाउस, होटल, हवाई जहाज, हेलीकॉप्टर, आओ भगत, महंगा टेंट,एसी,लाइट फूल वाला मंच बैनर पोस्टर, वीआईपी भोजन कैटरिंग प्रदर्शन बंद होना चाहिए फंड पैसा विभागीय आवंटन से अनावश्यक दुरूपयोग होता है
क्या आखिर जनता के टैक्स पटाती है तो विभागीय फंड जनरेट होता है और इस प्रकार के अनावश्यक खर्चों से सरकार पर बोझ बढ़ता है