बिलासपुर 23 मार्च। हाईकोर्ट ने 19 साल बाद अनुकंपा नियुक्ति की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य दिवंगत कर्मचारी के परिवार को तत्काल राहत प्रदान करना है, न कि वर्षों बाद रोजगार देना।
बिलासपुर 23 मार्च। याचिकाकर्ता समीर कुमार उइके ने अपने पिता की सरकारी सेवा में रहते हुए हुई मृत्यु के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति की मांग की थी। उनके पिता लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) में सहायक ग्रेड-2 के पद पर कार्यरत थे और 21 जून 1998 को उनका निधन हो गया था। याचिकाकर्ता के बड़े भाई नितिन कुमार ने 1 अक्टूबर 2001 को अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। आवेदन इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि उनकी मां पहले से ही सरकारी सेवा में कार्यरत थीं।
बिलासपुर 23 मार्च। याचिकाकर्ता ने यह दलील दी कि उनकी मां सेवानिवृत्त हो चुकी हैं और कैंसर से पीड़ित हैं, साथ ही उनके बड़े भाई का 6 सितंबर 2015 को निधन हो गया। इस आधार पर उन्होंने 6 अक्टूबर 2016 को पुनः आवेदन किया, जिसे 9 जनवरी 2017 को खारिज कर दिया गया।
परिवार का सदस्य पहले से सरकारी नौकरी में, आवेदन भी देर से
बिलासपुर 23 मार्च। राज्य सरकार की ओर से पैनल अधिवक्ता मुक्ता त्रिपाठी ने कोर्ट में तर्क दिया कि अनुकंपा नियुक्ति नीति के अनुसार, यदि परिवार का कोई भी सदस्य पहले से सरकारी सेवा में हो, तो किसी अन्य सदस्य को यह लाभ नहीं दिया जा सकता। अदालत ने इस दलील को सही मानते हुए कहा कि याचिकाकर्ता की मां पहले से सरकारी सेवा में थीं, इसलिए वह पहले ही अयोग्य हो चुके थे। साथ ही याचिकाकर्ता ने अपने पिता की मृत्यु के 19 साल बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया, जबकि यह सुविधा केवल तत्काल सहायता के लिए होती है। इन तथ्यों के आधार पर, हाईकोर्ट ने याचिका को प्रारंभिक चरण में ही खारिज कर दिया।