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High Court : पागलपन के आधार पर आरोपी को पॉक्सो अधिनियम से छूट नहीं दी जा सकती- हाईकोर्ट

 



बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि पॉक्सो एक्ट के तहत विशेष अपराधों के मामलों में पागलपन के आधार पर आरोपी को अपराध की जिम्मेदारी से छूट नहीं दी जा सकती। चीफ जस्टिस रमेश सिंह, जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डिवीजन बेंच ने जोर देकर कहा कि अपवादों 

को संदेह से परे साबित करने का सिद्धांत बने रहना चाहिए। प्रस्तुत साक्ष्य और अभियोजन पक्ष द्वारा दिए गए तर्क प्रतिवादी के अपराध को इतनी स्पष्टता से साबित करते हैं कि उसे दी गई सजा उचित है।







अपीलकर्ता को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश,

फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (पॉक्सो), राजनांदगांव ने भारतीय दंड संहिता की धारा 376 ए बी और पॉक्सो एक्ट की धारा 5(एम) और धारा 6 के तहत दोषी ठहराया था। उसको प्राकृतिक मृत्यु तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। डिफ़ॉल्ट के मामले में एक साल की सख्त कैद की अतिरिक्त सजा दी गई।







5 नवंबर, 2020 को, अपीलकर्ता ने अपने घर में एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार किया। पीड़िता की चाची 

और अन्य बच्चों ने इस घटना को देखा और पीड़िता के माता-पिता और पुलिस को इसकी सूचना दी। इसके बाद, अपीलकर्ता को गिरफ्तार किया गया। उस पर आईपीसी और पॉक्सो एक्ट की संबंधित धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया गया। कोर्ट ने दस्तावेजी प्रमाणों, जिसमें जन्म प्रमाण पत्र और पीड़िता के परिवार और चिकित्सा पेशेवरों की गवाही शामिल थी, के आधार पर पुष्टि की कि

घटना के समय पीड़िता 12 वर्ष से कम उम्र की नाबालिग थी।

अपीलकर्ता ने निचले कोर्ट द्वारा दी गई सजा के विरुद्ध हाईकोर्ट में अपील की। इसमें मुख्य आधार दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 84 के तहत पागलपन का लिया। अपीलार्थी के बचपन से मानसिक रूप से कमजोर होने की दलील देते हुए इस आधार पर सजा निरस्त करने की मांग की। हाईकोर्ट ने मनोचिकित्सक डॉ. एएस सराफ और जेल अधीक्षक अक्षय

सिंह राजपूत की गवाही सहित सबूतों की जांच की। दोनों गवाहों ने पुष्टि की कि अपीलकर्ता स्वस्थ मानसिक स्थिति में था और अपने कार्यों की प्रकृति को समझने में सक्षम था। सुनवाई के दौरान डिवीजन बेंच ने कहा कि “अपीलकर्ता अपने अपराध की गंभीरता और अपनी आपराधिक जिम्मेदारियों को समझने की





क्षमता रखता है और उसमें अपराधबोध की भावना भी है।” 

हाईकोर्ट ने अपीलकर्ता के खिलाफ पर्याप्त सबूत पाए, जिसमें पीड़िता की गवाही, चिकित्सा रिपोर्ट और फोरेंसिक सबूत शामिल थे। पीड़िता और अपीलकर्ता के कपड़ों की जांच से पीड़िता के बयान की पुष्टि हुई। अदालत ने कहा कि “अभियोजन पक्ष ने यह साबित करने में सफलता प्राप्त की है कि आरोपी ने 12 वर्ष से कम उम्र की नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार और गंभीर यौन उत्पीड़न किया।” इस आधार पर डिवीजन बेंच ने ट्रायल कोर्ट की सजा को बरकरार रखते हुए अपीलकर्ता की पागलपन की दलील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने विशेष रूप से पॉक्सो एक्ट के तहत गंभीर अपराधों के मामलों में अपवादों को संदेह से परे साबित करने के महत्व को दोहराया।

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