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अंधी हो रही व्यवस्था, आम आदमी को जमीन या मकान लेने के लिए एक नंबर के पैसों को करना होगा 2 नंबर के

 





रायपुर। इसे अंधेरगर्दी नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे...आम आदमी को किसी प्रायवेट बिल्डर से प्लॉट या मकान लेना हो तो उसे अपनी पसीने से अर्जित एक नंबर की गाढ़ी कमाई को दो नंबर में बदलना होगा। क्योंकि, छत्तीसगढ़ में संपत्ति का सरकारी रेट एक चौथाई है। लिहाजा, तीन चौथाई राशि आपको दो नंबर में देनी होगी। याने कैश में। इसके लिए आपको तीन-तिकड़म कर कैश का जुगाड़ करना होगा। वरना, आप कोई संपत्ति खरीद ही नहीं सकते।



दरअसल इन सबके पीछे बड़ा खेल है। बताया जाता है कि किसी भी प्रोजेक्ट में बिल्डरों को अपना कुछ नहीं होता। जमीन भी नेताओं, मंत्रियों और नौकरशाहों के पैसे से खरीदी होती है और उसके बाद कालोनियां और अपार्टमेंट भी उन्हीं के इंवेस्टमेंट से। अपना कुछ लगा नहीं, सो बैंक का ब्याज या नुकसान की कोई चिंता नहीं। दिखाने के लिए बिल्डर बैंक से लोन लेते हैं और तुरंत ही उसे चूकता कर देते हैं। याने सिर्फ कागजों में शो करने के लिए लोन।

चूकि रायपुर और उसके आसपास के अधिकांश हाउसिंग प्रोजेक्टों में नेताओं और नौकरशाहों का पैसा लगा है, सो कोविड में रियल इस्टेट धड़ाम से जमीन पर आ गया था, तब भी आपको जानकार ताज्जुब हुआ कि अधिकांश बिल्डर अपने पुराने रेट पर अडिग रहे। नहीं बिकेगा सही मगर रेट कम नहीं करेंग। अब आप खेला समझ गए होंगे।

करोड़ों में दो नंबर की राशि


छत्तीसगढ़ का सलाना बजट 5 हजार करोड़ से चालू हुआ था और एक लाख करोड़ से उपर पहुंच गया है। चाहे बीजेपी का टाईम हो या कांग्रेस का, कई मंत्री 30 से 40 परसेंट कमीशन लेते थे। इसके अलावा नौकरशाहों का अपना हिस्सा। इतने बड़े बजट में हर साल कमीशन की राशि निकालेंगे तो हजार करोड़ से उपर जाएगा। और पूरा कैश में आना है। मुठ्ठी भर बड़े लोग इस पैसे को बड़े उद्योगों में या फिर गुड़गांव जैसे जगहों पर इंवेस्ट कर देते हैं। लेकिन, बाकी पैसे यही लगते हैं।



सरकार का संरक्षण


रायपुर के बिल्डरों को सरकार का भी संरक्षण मिल रहा है। पिछली सरकार ने पांच साल से गाइडलाइन रेट नहीं बढ़ाया। उपर से 30 परसेंट की छूट दे दी। रायपुर के कथित आउटर अब पॉश कालोनियों में बदल गया है। मगर गाइडलाइन रेट आज भी हजार से बारह सौ हैं। और बेचते हैं चार से पांच हजार रुपए के रेट में।

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