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बैगा जनजाति की 25 वर्षीय महिला में मिला दुर्लभ कैंसर, मेडिकल कॉलेज की टीम ने किया 5 घंटे लंबा सफल ऑपरेशन

 





बिलासपुर, 3 अगस्त 2025/ छत्तीसगढ़ के सुदूर आदिवासी क्षेत्र से संबंध रखने वाली 25 वर्षीय महिला जो बैगा जनजाति से हैं। अपने गले के दाएं भाग में लंबे समय से लगातार बढ़ रही सूजन के कारण स्थानीय डॉक्टर के पास गई और उसने महिला को बिना देर किए छत्तीसगढ़ इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (CIMS), बिलासपुर रेफ़र किया ।





बिलासपुर, 3 अगस्त 2025. यह सूजन लगभग एक वर्ष से धीरे-धीरे बढ़ रही थी ,नींबू के आकार की यह सूजन वर्तमान स्थिती में कान के निचले भाग से लेकर कंधे तक फैल गई थी ,हाल के महीनों में इसमें से रुक-रुक कर रक्तस्राव भी होने लगा था।







              समग्र जांच के अंतर्गत गले का एमआरआई और सीटी स्कैन कराया गया और एफएनएसी (फाइन नीडल एस्पिरेशन साइटोलॉजी) की गई, जिसमें एक अत्यंत दुर्लभ प्रकार का कैंसर — हर्थल सेल कार्सिनोमा (Hurthle Cell Carcinoma) — की पुष्टि हुई, जो प्रारंभ में थायरॉयड ग्रंथि से उत्पन्न माना गया। यह कैंसर शरीर के किसी अन्य भाग में तो नहीं फैला है यह देखने के लिए छाती ,पेट तथा मस्तिष्क का सीटी स्कैन कराया गया और उसके बाद एफएनएसी रिपोर्ट के आधार पर तत्काल सर्जरी की योजना बनाई गई। यह ऑपरेशन ईएनटी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. आरती पांडे के मार्गदर्शन में किया गया, जिसमें डॉ. वी.बी. साहू,(एसोसिएट प्रोफेसर)डॉ. श्वेता मित्तल (सहायक प्राध्यापक) और डॉ. ज्योति वर्मा (सीनियर रेजिडेंट) और पीजी स्टूडेंट्स शामिल रहे।


   एनेस्थीसिया विभाग की टीम का नेतृत्व विभागाध्यक्ष डॉ. मधुमिता मूर्ति ने किया और सर्जरी के दौरान एनेस्थीसिया की जिम्मेदारी डॉ. श्वेता कुजूर ने कुशलतापूर्वक निभाई।अधिष्ठाता डॉ. रमणेश मूर्ति को चिकित्सा अधीक्षक डॉ लखन सिंह के माध्यम से जानकारी मिली कि यह महिला बैगा जनजाति की है, तो अधिष्ठाता महोदय के द्वारा निशुल्क ऑपरेशन किए जाने का आदेश दिया गया। लगभग 5 घंटे तक चले जटिल ऑपरेशन के दौरान यह तथ्य सामने आया कि ट्यूमर थायरॉयड नहीं, बल्कि पैरोटिड ग्रंथि (लार ग्रंथि) से उत्पन्न हुआ था। पूरी टीम ने मिलकर पैरोटिड ग्रन्थि को हटाया तथा नेक डिसेक्शन कर इसे अत्यंत सावधानीपूर्वक सफलतापूर्वक ऑपरेट किया गया ।


   इस जटिल सर्जरी की सफलता में ओटी नर्सिंग स्टाफ — , दीपा रितु और देव जी का भी अत्यंत महत्वपूर्ण सहयोग रहा, जिन्होंने ऑपरेशन के दौरान हर चरण में टीम का पूरा साथ दिया।लाखों रुपए की जांचों और ऑपरेशन को हमारे संभाग के सरकारी अस्पताल में मरीज का एक रूपए भी खर्च किए बिना बिल्कुल निशुल्क(फ्री) होना अधिष्ठाता और चिकित्सा अधीक्षक द्वारा संभव कराया गया । रोगी अब बेहतर स्थिति में है और तेजी से स्वस्थ हो रही है। अधिष्ठाता एवं चिकित्सा अधीक्षक के निरंतर समर्थन और प्रोत्साहन से यह कार्य संभव हो सका। यह केस न केवल एक दुर्लभ कैंसर की सफल पहचान और उपचार का प्रमाण है, बल्कि सिम्स बिलासपुर की समर्पित मल्टी-डिसिप्लिनरी टीम, शैक्षणिक नेतृत्व और प्रशासनिक सहयोग की एक मिसाल भी है।

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