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High Court : ड्यूटी से अनुपस्थिति के आधार पर बिना सुनवाई निरस्त नहीं किया जा सकता कॉन्ट्रैक्ट



बिलासपुर 3 मार्च, संविदा कर्मचारी से संबंधित एक मामले में हाईकोर्ट ने कहा कि उचित प्रक्रिया बिना संविदा कर्मचारी की सेवा समाप्त करना अवैध है। लापरवाही और ड्यूटी से अनुपस्थिति के आरोपों पर प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना निर्णय नहीं लिया जा सकता।



 बिलासपुर 3 मार्च, कोर्ट ने पाया कि वर्तमान मामले में जिला पंचायत, मुंगेली के अधिकारी अनिवार्य प्रक्रियाओं का पालन करने में विफल रहे। नियमानुसार कर्मचारी की वार्षिक कार्य रिपोर्ट (एसीआर) से सेवाओं का मूल्यांकन करने के साथ ही याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर प्रदान करना था। जस्टिस पार्थ प्रतिम साहू ने कहा कि उपर्युक्त तथ्यों और नियम 2012 छत्तीसगढ़ सिविल सेवा (संविदा नियुक्ति) 2012 के नियम 15 के अनुसार प्रतिवादियों ने कार्रवाई में प्रक्रिया का पालन नहीं किया। 




 बिलासपुर 3 मार्च, जब संविदा अवधि विस्तार न करने का आधार याचिकाकर्ता के खिलाफ सेवाओं के निर्वहन में लापरवाही और सेवा से अनुपस्थित रहने के आरोप हों। कोर्ट ने कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों तथा निर्णयों को ध्यान में रखते हुए इस न्यायालय की राय में मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत, मुंगेली ने याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर दिए बिना उसकी सेवा अवधि न बढ़ाकर गलती की है। इसलिए 12 फरवरी.2019 का पत्र निरस्त किया जाता है, जिसमें उसकी सेवा समाप्त की गई थी।



 याचिकाकर्ता देव सिंह परमार को संविदा के आधार पर रोजगार सहायक के रूप में नियुक्त किया गया। उसने समय-समय पर विस्तार के साथ 2017 तक लगातार सेवा की। बिना कोई कारण बताए 2017 में उसका कॉन्ट्रैक्ट नहीं बढ़ाया गया। याचिकाकर्ता ने विस्तार न किए जाने का कारण पूछा। इस पर मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत, मुंगेली ने बताया कि सेवा से कथित अनुपस्थिति के कारण कार्रवाई की गई। लेकिन याचिकाकर्ता को उसकी एसीआर की कॉपी उपलब्ध नहीं कराई गईं, जो उसके प्रदर्शन का आकलन और यह निर्धारित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं कि कॉन्ट्रैक्ट का नवीनीकरण किया जाना चाहिए या नहीं। याचिका में कहा कि कारण बताओ नोटिस और आरोपों का जवाब देने का अवसर दिए बिना ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता। 

प्रतिवादियों तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया। लेकिन कोर्ट ने पाया कि प्रतिवादी कोई ऐसा रिकॉर्ड प्रस्तुत करने में विफल रहे, जो यह दर्शाता हो कि याचिकाकर्ता को निर्धारित अवधि के भीतर कारण बताओ नोटिस दिया गया। इसके अतिरिक्त याचिकाकर्ता को समाप्ति या विस्तार न करने का कोई वैध कारण नहीं बताया गया। याचिका स्वीकार करते हुए कोर्ट ने आधिकारियों को कानून के अनुसार उचित कदम उठाने और याचिकाकर्ता की सेवाओं को जारी रखने पर निर्णय लेने का निर्देश दिया।

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