करीब दो महीने तक चले लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आ गया है। चुनाव आयोग की ओर से अभी फाइनल आंकड़ें नहीं दिए हैं, लेकिन यह साफ हो गया है कि बीजेपी अपने दम पर बहुमत में नहीं आ रही है। इस बार सरकार बनाने के लिए बीजेपी को अपने सहयोगी दल पर निर्भर रहना होगा। इस बीच बड़ा सवाल कि 400 के पार के नारे देने वाली बीजेपी से कहां चूक हो गई? वहीं, राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जोड़ी ने देश के सबसे अधिक लोकसभा वाले राज्य उत्तर प्रदेश में कैसे कमाल कर दिया, जिससे देश की राजनीति ही बदल गई? आइए इस बदले राजनीति को सिलसिलेवार समझने की कोशिश करते हैं।
बीजेपी क्यों बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई?
आरएसएस का साथ नहीं मिलना: बीजेपी के वोटरों को बूथ तक लाने में आरएसएस की अहम भूमिका रही है। इस बार के चुनाव में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चुनाव के बीच में कहा था कि जब हम कमजोर थे तो आरएसएस की जरूरत थी। आज हम खुद सक्षम है। पॉलिटिकल पंडितों का मनना है कि यह बयान बीजेपी के विरोध में गया और आरएसएस के जुड़े लोगों को बुरा लगा। उन्होंने इस चुनाव में बढ़-चढ़ कर भाग नहीं लिया। इसका खामियाजा महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश में बीजेपी को हुआ।
400 के पार का नारा पड़ा उल्टा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से 400 के पार का नारा दिया गया था। यह नारा बीजेपी के लिए उल्टा पड़ गया। कांग्रेस और 'इंडिया' गठबंधन में शामिल राजनीतिक पार्टी दलित वोटरों को यह समझाने में कामयाब रही कि अगर बीजेपी को 400 सीटें मिलेंगी तो मिलेगा तो हम संविधान बदल देगी। यानी दलितों और ओबीसी को मिलने वाला आरक्षण खत्म हो जाएगा। इसका बड़ा नुकसान बीजेपी को हुआ है। उत्तर प्रदेश में BSP का वोट बैंक मायवती से हटकर सपा और कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में चला गया।
सांसदों का टिकट नहीं काटना:
बीजेपी में पीएम मोदी से वोटरों को कोई दिक्कत नहीं थी लेकिन उन्हें अपने क्षेत्र के सांसदों से नाराजगी जरूर थी। दो बार से जीत रहे सांसदों को फिर से टिकट दिया गया। जनता में उनको लेकर नाराजगी थी कि वो मोदी के नाम पर जीत तो जाते हैं लेकिन काम नहीं करते हैं। इस बार फिर से पार्टी की ओर से जब टिकट दिया गया तो यह नाराजगी बढ़ गई। इसके चलते भी कई उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा है। दिल्ली में पार्टी ने अपने 6 सांसदों का टिकट काटा और रिजल्ट सबके सामने है।