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High court : न्यायिक कार्य करने वालों में ईमानदारी और दोषरहित आचरण जरूरी, हाईकोर्ट ने रायपुर के अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ग्वाल को कदाचरण का दोषी पाकर बर्खास्तगी को उचित कहा

 





बिलासपुर. हाईकोर्ट ने पूर्व न्यायिक अधिकारी प्रभाकर ग्वाल की बर्खास्तगी को बरकरार रखते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणियां की।चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस पार्थ प्रतिम साहू ने फैसले में कहा कि न्यायिक सेवा में ईमानदारी जरूरी है। “न्यायाधीश संपूर्ण न्याय प्रणाली के स्तंभ हैं,और जनता को न्यायिक कार्य करने वाले किसी भी व्यक्ति से वस्तुतः दोषरहित आचरण की माँग करने का अधिकार है।”



कोर्ट ने ग्वाल को वरिष्ठ न्यायपालिका सदस्यों के खिलाफ तुच्छ शिकायतें दर्ज करने, अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने सहित कदाचार में लिप्त होने का दोषी पाया। पूर्व में सिंगल बेंच ने भी बर्खास्तगी को उचित ठहराया था। इस पर डिवीजन बेंच में अपील की गई थी।





रायपुर में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में कार्यरत प्रभाकर ग्वाल को उनके खिलाफ कई शिकायतों और आरोपों के बाद 1 अप्रैल, 2016 को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। ग्वाल की बर्खास्तगी संविधान के अनुच्छेद 311(2)(बी) को लागू करते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के पूर्ण न्यायालय (फुल बेंच) की सिफारिशों पर आधारित थी। इस अनुच्छेद के अनुसार जब विभागीय जांच करना उचित रूप से व्यावहारिक नहीं है, तो जांच के बिना बर्खास्तगी की जा सकती है।





ग्वाल ने बर्खास्तगी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए तर्क दिया था कि यह नियुक्ति प्राधिकारी के अधीनस्थ प्राधिकारी द्वारा दी गई थी। साथ ही नियुक्ति आदेश छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (सीपीएससी) के साथ उचित परामर्श के बिना पारित किया गया था। ग्वाल ने तर्क दिया कि बर्खास्तगी का आदेश अतिरिक्त सचिव द्वारा जारी किया गया था, जो प्रमुख सचिव के अधीनस्थ है, जिससे आदेश अमान्य हो जाता है। उन्होंने तर्क दिया कि विभागीय जांच के बिना बर्खास्तगी संविधान के अनुच्छेद 311(2)(बी) का उल्लंघन करती है। ग्वाल ने दावा किया कि बर्खास्तगी अमान्य थी क्योंकि इससे पहले सीपीएससी से परामर्श नहीं किया गया था।ग्वाल ने एकल न्यायाधीश की ओर से पक्षपात का आरोप लगाया, जिसने उनकी रिट याचिका को खारिज कर दिया, क्योंकि न्यायाधीश उस पूर्ण न्यायालय का हिस्सा थे जिसने उनकी बर्खास्तगी की सिफारिश की थी। 

  कोर्ट ने आरोपों और मामले के प्रक्रियात्मक पहलुओं की सावधानीपूर्वक जांच की। कोर्ट ने पाया कि ग्वाल का अपने सहकर्मियों और वरिष्ठों, जिनमें हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश और उच्च पदस्थ राज्य अधिकारी शामिल हैं, के विरुद्ध निराधार शिकायतें करने का इतिहास रहा है। न्यायालय ने ऐसे कई उदाहरणों पर प्रकाश डाला जहाँ ग्वाल ने अपनी शिकायतों और कारण बताओ नोटिस के उत्तरों में अपमानजनक और अवमाननापूर्ण भाषा का प्रयोग किया। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि न्यायिक अधिकारियों को अपनी आधिकारिक क्षमता और व्यक्तिगत जीवन दोनों में ईमानदारी और आचरण के उच्चतम मानकों मानकों को बनाए रखना चाहिए। 

सुनवाई के बाद डिवीजन बेंच ने फुल बेंच की इस अनुशंसा को बरकरार रखा कि ग्वाल के आचरण की प्रकृति और न्यायपालिका में व्यवधान और शर्मिंदगी की संभावना को देखते हुए विभागीय जाँच करना उचित रूप से व्यावहारिक नहीं था।

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