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सामान्य कार्यकर्ता से गृह मंत्री तक का सफर... जानें अमित शाह के बारे में

 





वर्तमान राजनीति में एक धूमकेतू की तरह उभरता नाम अमित शाह का है। जो कुशल राजनीतिक रणनीतिकार भी हैं। उनमें संगठन भी क्षमता भी है। अभी तक अमित शाह की चुनाव रणनीति असरकारक साबित हुई हैं। बेशक वे 2014 के चुनाव के नायक नहीं थे, पर आगे जाने पर वे लोगों के नायक बन गए, इसमें कोई दो मत नहीं। वे स्वयं को नरेंद्र मोदी का सिपाही मानते हैं। अमित शाह भाजपा के सफल अध्यक्ष हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत दिलाने वाले नरेंद्र मोदी के संकटमोचन अमित शाह के खिलाफ जितने षड्यंत्र रचे गए, शायद ही किसी के खिलाफ रचे गए होंगे। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि वाराणसी से नरेंद्र मोदी को चुनाव लड़ाने का निर्णय अमित शाह का ही था। वे नरेंद्र मोदी सरकार में सबसे छोटी उम्र के गृह राज्य मंत्री बने। अभी तक वे छोटे-बड़े 42 चुनाव लड़ चुके हैं। इसमें से एक में भी उन्हें हार का सामना नहीं करना पड़ा है।

मुम्बई के एक व्यापारी के यहां हुआ जन्म

अमित शाह का जन्म 22 अक्टूबर 1964 को महाराष्ट्र के मुम्बई में एक व्यापारी के घर हुआ था। गुजरात के एक सम्पन्न परिवार से हैं। उनका पैतृक गांव माणसा है। महेसाणा में प्राथमिक शिक्षा के बाद वे अहमदाबाद आए। यहां से उन्होंने बायोकेमिस्ट्री की पढ़ाई की। पढ़ाई पूरी करने के बाद वे पिता का व्यवसाय संभालने लगे। 20 साल की छोटी उम्र में उन्होंने पीवीसी पाइप बनाने की छोटी-सी फैक्टरी शुरू की। वे गुजरात में सिंचाई के लिए पाइप बनाने वाले पहले उद्यमी थे। इसके बाद उन्होंने शेयर बाजार में पैसा लगाया।

पहली बार आरएसएस से जुड़कर काम किया

आरएसएस की कार्यप्रणाली से वे काफी प्रभावित थे। आरएसएस के वरिष्ठ स्वयंसेवक रतिभाई पटेल 80 के दशक की शुरुआत में अमित शाह को साइकिल पर बिठाकर ले जाते थे। अमित शाह हमेशा अपने साथी कार्यकर्ताओं की मदद करने के लिए तैयार रहते। नरेंद्र मोदी से अमित शाह की पहली मुलाकात आरएसएस की शाखा में ही हुई। यहीं उन्होंने नरेंद्र मोदी से भाजपा में जोड़ लेने की इच्छा व्यक्त की। तब नरेंद्र मोदी उन्हें तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष शंकर सिंह वाघेला के पास ले गए। उनका परिचय देते हुए मोदी ने कहा था- ये अमित शाह हैं, प्लास्टिक के पाइप बनाने का धंधा करते हैं। अच्छे बिजनेसमेन हैं। इन्हें पार्टी का थोड़ा काम दो। इस तरह से अमित शाह भाजपा से जुड़ गए। 1990 के चुनाव में अमित शाह ने चुनाव की जवाबदारी निभाने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यहां आडवाणी जी भले ही कदम न रखें, पर मैं उन्हें जितवा दूंगा। उनके इस आत्मविश्वास से नरेंद्र मोदी काफी प्रभावित हुए। उस सीट की चुनावी बागडोर अमित शाह के हाथ में आ गई। इस चुनाव के बाद अमित शाह का कद बढ़ गया।

1996 में फिर मिला राजनीति के चाणक्य को अवसर

1996 में एक बार फिर अमित शाह को फिर यह अवसर मिला। इसके बाद अमित शाह एक छोटे नेता की छवि से बाहर आ गए। अब वे एक ऐसे नेता के रूप में सामने आए, जो चुनाव-प्रबंधन में माहिर है। गुजरात में बैंकों से लेकर दूध तक जुड़ी को-ऑपरेटिव्ह संस्थाओं पर कांग्रेस का कब्जा था। अमित शाह ने इन संस्थाओं पर भगवा फहराने की शुरुआत की। 1998 में अमित शाह अहमदाबाद जिला को-ऑपरेटिव्ह बैंक के चेयरमेन बने। 2004 में अहमदाबाद के बाहर के क्षेत्र में एक फर्जी एनकाउंटर में 19 वर्षीय इशरत जहां, जीशान जोहर और अमजद अली राणा के साथ प्रणेश की हत्या हो गई। गुजरात पुलिस ने यह दावा किया कि गोधरा के दंगों का बदला लेने के लिए ये लोग गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने के लिए आए थे। इस मामले में गोपीनाथ पिल्लई ने कोर्ट से अपील की कि अमित शाह को भी आरोपी बनाया जाए। इसके बाद 15 मई 2014 को सीबीआई ने पर्याप्त सबूत के अभाव में पिल्लई के आवेदन को अस्वीकार कर दिया। एक समय ऐसा भी आया, जब सोहराबुद्दीन शेख के फर्जी एनकाउंटर के मामले में उन्हें 25 जुलाई 2010 को अरेस्ट भी कर लिया गया। उन पर आरोप था कि इस फर्जी एनकाउंटर में उनका भी हाथ है। इस संबंध में सबसे बड़ा खुलासा उनके खास रह चुके गुजरात पुलिस के सस्पेंडेड अधिकारी डीजी वंजारा ने किया।


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